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नमस्कार दोस्तों! आपने अक्सर सुना होगा कि Tesla की कारें अपने आप चलती हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर ये ऑटोपायलट सिस्टम गड़बड़ा जाए तो क्या होगा? फ्लोरिडा से एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जहां इलॉन मस्क की कंपनी Tesla को कोर्ट ने 2100 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है! जी हां, 2100 करोड़! ये कोई छोटी-मोटी रकम नहीं है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि कोर्ट को इतना बड़ा फैसला सुनाना पड़ा? आइए जानते हैं।
पहला बड़ा झटका: क्या हुआ था?
बात साल 2019 की है। फ्लोरिडा के लार्गो शहर में एक Tesla Model S Sedan अपनी ऑटोपायलट मोड पर चल रही थी। सब कुछ ठीक लग रहा था, लेकिन अचानक सिस्टम में कुछ खराबी आई और इस कार ने एक SUV को ज़ोरदार टक्कर मार दी। ये हादसा इतना भयानक था कि 22 साल की नाइबेल बेनावाइड्स की मौके पर ही मौत हो गई और उनका बॉयफ्रेंड डिलन एंगुलो बुरी तरह घायल हो गया। सोचिए, चंद मिनटों में खुशहाल ज़िंदगी तबाह हो गई।
कोर्ट ने Tesla को क्यों लपेटा?
शुरुआत में Tesla ने कहा कि हादसे की वजह ड्राइवर था, जो फोन पर बिजी था। उनका कहना था कि ड्राइवर ने ध्यान नहीं दिया। लेकिन कोर्ट ने Tesla की इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया। चार साल तक चले इस केस में मियामी कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि ड्राइवर की गलती तो थी, लेकिन असली पेंच Tesla के ऑटोपायलट सिस्टम में था। कोर्ट ने माना कि सिस्टम में ही कुछ कमी थी, जिसकी वजह से ये जानलेवा हादसा हुआ। यानी, पूरी ज़िम्मेदारी सिर्फ ड्राइवर की नहीं, Tesla की भी थी।
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केस की लंबी कहानी: Tesla ने क्या-क्या किया?
ये केस 2021 में पीड़ितों के परिवार ने टेस्ला के खिलाफ दर्ज कराया था। परिवार का आरोप था कि टेस्ला ने अपने ऑटोपायलट सिस्टम में मौजूद गड़बड़ियों को छुपाया। इतना ही नहीं, उन्होंने तो हादसे से पहले और बाद के सारे डेटा और वीडियो फुटेज भी मिटा दिए! सोचिए, कितनी बड़ी बात है ये!
- 2021 से 2025 तक, ये केस कोर्ट में चलता रहा। इस दौरान टेस्ला ने ऐसे कई और मामलों को या तो सेटल करवा लिया या कोर्ट में खारिज करवा दिया।
- मियामी की फेडरल कोर्ट में टेस्ला ने पूरी कोशिश की कि सारा इल्ज़ाम ड्राइवर पर आ जाए।
- लेकिन पीड़ितों के वकील अपनी बात पर अड़े रहे कि असली गड़बड़ तो ऑटोपायलट सिस्टम में थी।
- आखिरकार, टेस्ला को मानना पड़ा कि हां, गाड़ी में खराबी थी। लेकिन उन्होंने सबूत मिटाने के आरोप से साफ इनकार कर दिया।
- टेस्ला ने कोर्ट के इस फैसले को “गलत” बताया है।
Tesla का ‘ऑटोपायलट’ चलता कैसे है, और खतरा कहां है?
अब आप सोच रहे होंगे कि ये ऑटोपायलट सिस्टम आखिर काम कैसे करता है?
देखिए, इसका सीधा मतलब है कि गाड़ी खुद-ब-खुद चले, बिना ड्राइवर के ज़्यादा कुछ किए। ये कई चीजों पर निर्भर करता है:
- लोकेशन और मैप: ये सिस्टम सीधे सैटेलाइट से जुड़ता है। इसमें आप बताते हैं कि कहां जाना है, और ये अपने आप रास्ता चुन लेता है।
- कैमरे और सेंसर: गाड़ी के चारों तरफ (आगे, पीछे, दाएं, बाएं) कैमरे लगे होते हैं जो रास्ते में आने वाली चीज़ों को देखते हैं। अगर कोई रुकावट आती है, तो गाड़ी या तो रास्ता बदल लेती है या रुक जाती है। कई सारे सेंसर भी होते हैं जो गाड़ी को लेन में रखने और ट्रैफिक सिग्नल पढ़ने में मदद करते हैं।
- स्पीड: ऑटोपायलट मोड में कार 100 किलोमीटर प्रति घंटे से ऊपर की स्पीड पर भी चल सकती है।
मगर दोस्तों, इसमें एक पेंच है। ये टेक्नोलॉजी इतनी भी परफेक्ट नहीं है। कई बार इसके सेंसर काम करना बंद कर देते हैं, या फिर इसमें कोई ऐसा “” मुद्दा आ जाता है जिससे बड़ा हादसा हो जाता है। यही इस टेक्नोलॉजी की सबसे बड़ी कमी है, जिस पर अभी भी काम चल रहा है।
तो क्या ये गाड़ियां सुरक्षित हैं?
ये सवाल हर किसी के मन में आता है। Tesla की ऑटोपायलट टेक्नोलॉजी कमाल की है, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन इस फैसले से एक बात तो साफ हो गई कि ये अभी भी पूरी तरह से ‘फूल-प्रूफ’ नहीं है। इंसानी ज़िंदगी अनमोल है, और ऐसी हाई-टेक गाड़ियाँ तभी भरोसेमंद हो सकती हैं जब इनमें ज़रा भी गलती की गुंजाइश न हो। हमें उम्मीद है कि इस बड़े फैसले के बाद टेस्ला अपनी टेक्नोलॉजी को और बेहतर बनाएगी ताकि भविष्य में ऐसे हादसे न हों। अपनी राय कमेंट में ज़रूर बताएं!







