Infosys डूबने का कारण बने, ये विशाल सिक्का कौन है, 11 मिलियन डॉलर पगार लेते थे सालाना

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भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में से एक इन्फोसिस (Infosys) हमेशा से अपने नैतिक मूल्यों और पारदर्शिता के लिए जानी जाती रही है। लेकिन 2014 में जब विशाल सिक्का (Vishal Sikka) को CEO और MD नियुक्त किया गया, तो कंपनी के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हुआ। उनका उद्देश्य था इन्फोसिस को परंपरागत आईटी सेवाओं से निकालकर एक आधुनिक टेक कंपनी बनाना। लेकिन महज़ तीन साल में ही विवादों ने उन्हें घेर लिया और 2017 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया।

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विशाल सिक्का की एंट्री – बदलाव की शुरुआत

  • 2014 में Infosys ने पहली बार ऐसा CEO चुना जो कंपनी का संस्थापक नहीं था।
  • विशाल सिक्का पहले SAP में CTO रह चुके थे और टेक्नोलॉजी दुनिया में उनकी एक अलग पहचान थी।
  • उनकी नियुक्ति से उम्मीदें थीं कि कंपनी अब AI, क्लाउड और डिजिटल सर्विसेज़ पर ज़्यादा फोकस करेगी।
  • उनका विज़न था कि हर प्रोजेक्ट में इनोवेशन हो और इन्फोसिस केवल “सर्विस कंपनी” न रहकर एक प्रोडक्ट और इनोवेशन लीडर बने।

“Mr. Big Money” – पगार पर उठा विवाद

  • 2015-16 में vishal sikka का सालाना पैकेज करीब 11 मिलियन डॉलर तक पहुँच गया।
  • यह रकम Infosys के पुराने मूल्यों से मेल नहीं खाती थी।
  • सह-संस्थापक Narayana Murthy ने खुला पत्र लिखकर इस पर कड़ी आपत्ति जताई।
  • इसके बाद मीडिया और निवेशकों के बीच सिक्का को “Mr. Big Money” कहा जाने लगा।

लगातार विवाद क्यों बढ़े?

  1. ज्यादा वेतन – सह-संस्थापकों को लगा कि यह कंपनी के सिद्धांतों के खिलाफ है।
  2. CFO राजीव बंसल का सेवरेंस पैकेज – करोड़ों का पैकेज देकर विदाई, जिसे लेकर सवाल उठे।
  3. Punita Sinha की नियुक्ति – बोर्ड के फैसलों पर पारदर्शिता को लेकर विवाद।
  4. सह-अध्यक्ष की नियुक्ति – रवि वेंकटेशन को सह-अध्यक्ष बनाने पर सिक्का नाराज़ हुए।
  5. विश्वास की कमी – बोर्ड और सह-संस्थापकों के बीच लगातार अविश्वास बढ़ता गया।

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$45 बिलियन का AI अवसर गंवाया

  • 2015 में Infosys के पास OpenAI में निवेश करने का अवसर था।
  • लेकिन सह-संस्थापकों और सिक्का के बीच मतभेदों के कारण यह सौदा नहीं हुआ।
  • आज OpenAI विश्व की सबसे बड़ी AI कंपनी है और अनुमान है कि इन्फोसिस ने 45 बिलियन डॉलर का अवसर खो दिया।

इस्तीफ़े के पीछे की कहानी

  • 18 अगस्त 2017 को सिक्का ने अचानक इस्तीफ़ा दे दिया।
  • उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत हमलों और लगातार आरोपों के कारण उनके लिए काम करना मुश्किल हो गया।
  • अपने पत्र में उन्होंने लिखा – “विश्वास और सम्मान के बिना किसी भी संस्था में काम करना असंभव है।”

इन्फोसिस पर असर

  • सिक्का के कार्यकाल में कंपनी ने डिजिटल बिज़नेस और AI में निवेश बढ़ाया।
  • उन्होंने “Zero Distance” पहल शुरू की, जिससे हर प्रोजेक्ट में नए आइडिया लाने का प्रयास हुआ।
  • लेकिन लगातार विवादों ने उनके विज़न को पूरा होने नहीं दिया।
  • तीन साल बाद इन्फोसिस फिर से पारंपरिक ढर्रे पर लौट आई।

आज की स्थिति

आज जब AI और डिजिटल टेक्नोलॉजी दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बन चुकी है, तब सिक्का का विज़न और भी प्रासंगिक हो जाता है।

  • अगर Infosys ने उस समय OpenAI में निवेश किया होता, तो भारत आज AI क्षेत्र में अग्रणी हो सकता था।
  • सिक्का का कार्यकाल एक सीख है कि नवाचार (Innovation) और पारंपरिक सोच (Tradition) के बीच संतुलन कितना ज़रूरी है।

निष्कर्ष

विशाल सिक्का की कहानी केवल एक CEO के आने और जाने की नहीं है, बल्कि यह भारतीय कॉर्पोरेट इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय है।

  • उन्होंने Infosys को डिजिटल दिशा देने की कोशिश की।
  • “Mr. Big Money” के नाम से आलोचना झेली।
  • और अंततः मतभेदों के कारण पद छोड़ना पड़ा।

👉 सबसे बड़ा सवाल यही है – अगर सिक्का को पूरा समर्थन मिलता, तो क्या Infosys आज दुनिया की सबसे बड़ी AI कंपनी के साथ खड़ी होती?


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